Sunday, February 8, 2009

one of the very first and most beautiful poems I learnt as a child...

लाला जी ने केला खाया
केला खाके मुँह पिचकाया
मुँह पिचका कर तोंद फुलाई
तोंद फुलाकर छड़ी उठाई
छड़ी उठाकर कदम बढाया
कदम के नीचे छिलका आया
लालाजी गिरे धडाम
मुँह से निकला हाय राम !

1 comment:

Shivangi Shaily said...

ha ha .....childhood revamped. :)