Here is another one guys, I composed it 4 yrs back in feb 2004.
आज घर से बाहर निकला तो
सबने अच्छी तरह से बात की
सबने मेरी मदद की
किसी ने मुझे धोखा नहीं दिया
किसी ने मुझसे झगड़ा नहीं किया
कहीं कोई मुझसे चिढ़ा नहीं
किसी ने मुझसे झूठ नहीं बोला
सब मेरे दोस्त बन गये
सबमें में मैने खुद को देखा
और ये दिन मेरे लिये सबसे ज्यदा खुशी लाया
क्या था ये , मैं समझ ना पाया
पर जब घर लौटकर आईना देखा
तो मैने खुद को बदला मनु पाया।
3 comments:
...manu the poet!!....great yaar!!.....kya baat hai!!.....keep it up!!.......poem was excellent!!!..
sale kuch bhi likh deta hia....
behsarram.....
wo kya tha havin a gal and not havin......
yar hum sab jaante hai...
but man seriously that was damnnnnnnn good..........
F**king awesome
@amit thanks man
@gunnu..
abe kis post ka comment kahan kar deta hai be??
but u liked that...thnx
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